चाहत होती है
इक बूँद की,
होठों से होकर
हलक को जो छू ले
और जलती-सी प्यास,
वह शांत हो ले.
और
बूँद मिलती भी है
हलक को
शांत होने को,
प्यास बुझाने को,
पर बुझती नहीं है,
और भी धधक जाती है,
बूँद की नहीं अब,
स्रोत की चाह होती है,
उसके अनवरत बहते
शीतल मधु धार में
होठों को सतत
भिंगोये रखने की चाह होती है,
उस धार में
डूबे रहने की चाह होती है.
इक बूँद की,
होठों से होकर
हलक को जो छू ले
और जलती-सी प्यास,
वह शांत हो ले.
और
बूँद मिलती भी है
हलक को
शांत होने को,
प्यास बुझाने को,
पर बुझती नहीं है,
और भी धधक जाती है,
बूँद की नहीं अब,
स्रोत की चाह होती है,
उसके अनवरत बहते
शीतल मधु धार में
होठों को सतत
भिंगोये रखने की चाह होती है,
उस धार में
डूबे रहने की चाह होती है.
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