Thursday, January 14, 2016

यादों की गठरी


मैं पुरानी बातों की,
पुरानी यादों की गठरी साथ लिए चलता हूँ.

सुनता हूँ,
उनमें बस अतीत बसता है,
मानव मन उनमें फंसता है,
हम उनमें खोते जाते हैं,
उनमें ही घुलते जाते हैं
पर मैं उनको भी अपने साथ लिए चलता हूँ. 
मैं अपनी यादों की गठरी हाथ लिए चलता हूँ।

पिछले जख्मों की टीस भी है,
छूटे सपनों की प्यास भी है, 
कुछ लम्हों की चुभन भी है,
एक अनकही-सी कसक भी है,
पर ये भी उतने ही अपने हैं,
इन अपनों को जीवन में मैं साथ लिए चलता हूँ. 
मैं अपनी यादों की गठरी हाथ लिए चलता हूँ।

उस गठरी में ही मेरी
कुछ सुंदर यादें बसती हैं,
तुम, मैं और हम, सब की 
प्यारी-सी सूरत सजती है.
इन प्यारी चीजों को, बोलो,
क्यों मैं उन्हें भुला जाऊं,
उन्हें छोड़ क्यों बढ़ जाऊं.
तुम भी तो इनमें ही हो,
मैं तुम्हें भूल ना पाऊंगा,
जीवन के अपने गीतों में
बोल नहीं फिर भर पाऊंगा.
उन यादों को फिर से जीऊंगा,
यह आस जीवन में साथ लिए मैं चलता हूँ.
मैं अपनी यादों की गठरी हाथ लिए चलता हूँ।