Sunday, February 8, 2009

शारदा-स्तुति

वासंती माँ, यह नमन गहो तुम,
अन्तःतम का शमन करो तुम,
तव सृष्टि के नव उद्भव हम,
जन-जीवन की ज्योत् महद् तुम।

जीवन में शुचिता, संयम हो,
निज स्नेह से हमको भर दो,
विकसित हो यह नव जन-जीवन,
माँ, संशय का मूल मिटा दो।

विद्या की परिणति भक्ति-विनय,
है भक्ति भावना आत्म उदय,
संग रहे तेरा हाथ सदा,
हो हम अबोध का ज्ञानोदय।

श्रद्धा गदगद् , नेत्र अश्रुमय,
दर्शन तेरा मातु प्रेममय,
कलुष मिटा हमको दो जीवन,
चित्तवृत्ति अपनी हो भक्तिमय।

सद्गुण विकसित प्रतिक्षण, प्रतिपल
ज्ञान बने हम सब का संबल,
करते माँ हम तेरा वंदन
चित्त रहे हम सब का अविचल।

असत् भाव का करते तर्पण,
सारे भाव तुझी को अर्पण,
आस्था का यह दीप जले माँ,
हम तुझसे करते यह याचन।

अब मैं शायद बड़ा हो गया

आगे लम्बी सड़क खुली थी,
मौसम भी खुला-खुला-सा था,
अन्दर से कुछ उमड़ा-सा था,
खुली सड़क पर बाहें फैलाए
मैं उन्मुक्त दौड़ा था,
राह चलते बच्चे अचानक
मुझे देखकर हँस पड़े,
और सोच में डाल गए-
'अब मैं शायद बड़ा हो गया।'

* * * * * * * * *

बारिश की टिप-टिप बूँदें थी,
कुछ चेहरे पे, कुछ हाथों पर,
मीठी-मीठी, प्यारी-सी थीं,
रिमझिम फुहार में बाहें खोले
मैं स्वछन्द निकला था,
कुछ लोग रह चलते अचानक
मुझे देखकर हँस पड़े,
और शायद कह गए-
'अब मैं शायद बड़ा हो गया।'