अन्तःतम का शमन करो तुम,
तव सृष्टि के नव उद्भव हम,
जन-जीवन की ज्योत् महद् तुम।
जीवन में शुचिता, संयम हो,
निज स्नेह से हमको भर दो,
विकसित हो यह नव जन-जीवन,
माँ, संशय का मूल मिटा दो।
विद्या की परिणति भक्ति-विनय,
है भक्ति भावना आत्म उदय,
संग रहे तेरा हाथ सदा,
हो हम अबोध का ज्ञानोदय।
श्रद्धा गदगद् , नेत्र अश्रुमय,
दर्शन तेरा मातु प्रेममय,
कलुष मिटा हमको दो जीवन,
चित्तवृत्ति अपनी हो भक्तिमय।
सद्गुण विकसित प्रतिक्षण, प्रतिपल
ज्ञान बने हम सब का संबल,
करते माँ हम तेरा वंदन
चित्त रहे हम सब का अविचल।
असत् भाव का करते तर्पण,
सारे भाव तुझी को अर्पण,
आस्था का यह दीप जले माँ,
हम तुझसे करते यह याचन।
ज्ञान बने हम सब का संबल,
करते माँ हम तेरा वंदन
चित्त रहे हम सब का अविचल।
असत् भाव का करते तर्पण,
सारे भाव तुझी को अर्पण,
आस्था का यह दीप जले माँ,
हम तुझसे करते यह याचन।
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