Sunday, August 15, 2010

मुस्कान

साँसों में गहरी, घुलती-सी,
होंठों पर प्यारी फैली-सी,
चंचल नैनों में लास लिए

हँसी बहुत वह खिलती थी.
गालों में लाली भरती-सी,
कुछ-कुछ पगली-सी लगती-सी,
खुद में थोड़ी चुहल लिए वह

हँसी बहुत इतराती थी.


लुकती-छिपती, पास बुलाती,
यह बतलाती, वह बतलाती,
चुपके-चुपके मुझपर हँसती
हँसी बहुत वह खिलती थी.
कभी हल्की-हल्की-सी खिलती,
कभी पूरे सुर में थी सजती,
पल में अपने रंग बदलती
वह हँसी बहुत भरमाती थी.

वह खुद में शरमाई थी,
या मुझको भरमाई थी,
हौले-से बनती बांकी-सी
वह हँसी बहुत अलबेली थी.

चलते-चलते कुछ बल खाती,
नयनों को खुद पर थिरकाती,
रस में डूबी अनगढ़-सी
वह हँसी बहुत मतवाली थी.
मुड़-मुड़कर आगे बढती थी,
तिरछे नयनों से तकती थी,
मन में हल्की चुभन जगती
वह हँसी बहुत तरसाती थी.

अपने
में कुछ बात छुपाती,
पूछूँ मैं, वह ना बतलाती,
खिलते-खिलते-से चेहरे पर
वह हँसी बहुत इठलाती थी.

कुछ कहकर वह चुप हो जाती,
आँखों को तब गोल बनाती,
जैसे कुछ ना समझी हो वह
हँसी बहुत भोली बनती थी.
प्रातः की ताज़ी-खिली कली-सी,
मौन अधरों पर उमड़ी-सी,
मंद-मंद-सी मदिर तुम्हारी
हँसी बहुत कुछ कहती थी.
मैंने जो देखी तुम पर थी,
छल-छल बहने को आतुर थी,
यूँ ही हर पल हंसा करो, वह
मुस्कान बहुत ही प्यारी थी।

Saturday, August 14, 2010

बरस अम्बर

गरज अम्बर,
बरस मन भर,
मुक्त कर स्वर,
राग झर-झर.

बहा अविरल,
स्नेहमय जल ,
हृदय चंचल,
सिक्त कर चल.

ताप यह हर,
प्राण नव भर,
जलद मनहर
बरस सत्वर.

गहन श्यामल,
नील घन दल,
बरस शीतल,
मेघ के जल.

धरा विहसित,
लता हर्षित,
वात सुरभित,
गात विगलित.

मृदुल जलकण,
मगन कण-कण,
छटा नूतन,
पुलक तन-मन