गरज अम्बर,
बरस मन भर,
मुक्त कर स्वर,
राग झर-झर.
बहा अविरल,
स्नेहमय जल ,
हृदय चंचल,
सिक्त कर चल.
ताप यह हर,
प्राण नव भर,
जलद मनहर
बरस सत्वर.
गहन श्यामल,
नील घन दल,
बरस शीतल,
मेघ के जल.
धरा विहसित,
लता हर्षित,
वात सुरभित,
गात विगलित.
मृदुल जलकण,
मगन कण-कण,
छटा नूतन,
पुलक तन-मन।
बरस मन भर,
मुक्त कर स्वर,
राग झर-झर.
बहा अविरल,
स्नेहमय जल ,
हृदय चंचल,
सिक्त कर चल.
ताप यह हर,
प्राण नव भर,
जलद मनहर
बरस सत्वर.
गहन श्यामल,
नील घन दल,
बरस शीतल,
मेघ के जल.
धरा विहसित,
लता हर्षित,
वात सुरभित,
गात विगलित.
मृदुल जलकण,
मगन कण-कण,
छटा नूतन,
पुलक तन-मन।
2 comments:
i dnt lik rain much
bt lik ur poem on it
did not understand much but...liked it!!!
Post a Comment