Monday, March 1, 2010

ढलती-सी शाम कहीं...

ढलती-सी शाम कहीं,
छलका है जाम कहीं,
अब के सफ़र में अपना
भूला हूँ नाम कहीं.
ढलती-सी शाम कहीं...

मंजिल का नाम नहीं,
रस्ते को थाम कहीं,
आँखें उनींदी लिए
निकला हूँ आज कहीं.
ढलती-सी शाम कहीं...

अब तुम हो साथ नहीं,
प्यारी वो बात नहीं,
सपनों के टूटे पल में
बिखरे ज़ज्बात कहीं.
ढलती-सी शाम कहीं...

अपनी तो शाम यहीं,
बैठे - बेकाम सही,
दो लफ़्ज आ ही गए,
गाता हूँ आज यहीं.
ढलती-सी शाम कहीं...


1 comment:

abhinit said...

bahut sahi hai bhai..... ye sab sochte kahan se ho...