Tuesday, October 30, 2007

मैत्री-याचना

एक स्नेह बंधन चाहता हूँ,
दो बूंद नेह मैं माँगता हूँ,
हृदय से जो पुकार उठी है
उसका संबल मैं चाहता हूँ;

यह शुध्द हृदय से निकलीं हैं,
भाव सागर की ये लहरें हैं,
मधुर-प्रिय चित्र जो मन में है
उसको साकार मैं चाहता हूँ;

कुछ बातें कहनी बाकी हैं,
भाव अब तलक़ एकाकी हैं,
जो कुछ मन में है उमड़ रहा
वो तुझसे कहना चाहता हूं;

भाव-जगत् में मैं हूं अकेला,
मन में है प्रतीक्षित वह वेला,
मैत्री की सुमधुर गलियों में
संग तुम्हारा मैं चाहता हूं;

कुछ ही खुशियाँ अपनी हैं,
यह एक दान मैं चाहता हूं,
स्वप्न में थी जो चेहरे पे
वो इक मुस्कान मैं चाहता हूं;

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