Thursday, January 1, 2009

नववर्ष

जाग उठी है भोर सुनहरी
भागा अंतरमन का तम है
पुलकित हर्षित धूप रुपहली
छकित हुआ ह्रदय उपवन है।

अरुण उदित दीप्त अम्बर में
विभा विकीर्ण नभ के उपवन में
तन-मन कम्पित अति उमंग से
कुसुम खिले जग के कानन में।

बेला नव उत्साह ग्रहण की
हो रहा मन में गुंजन है
प्रेरित हों उस आदिशक्ति से
करते जिसका हम वंदन हैं।

नव वर्ष में भवे हर्ष नव
जीवन में उत्कर्ष भवे तव
दिवस प्रहर हर क्षण हो सुन्दर
मुदित मन में हो मंगल रव।

संवत् सिद्ध भवे नित उज्जवल
छाप अमिट छोडे तव पदतल
भाव सुमन हैं तुझको अर्पित
दर्शित हो केवल उदयाचल।

रचता मन में गीत मनोहर
स्मृति विगत हर्षित यह अंतर
भाव कोकिला पंचम गाये
मंगल उर गाता संग सस्वर।

मंजुल मुदित उल्लसित जीवन
करते निज शुभ भाव समर्पण
मंगलमय यह वर्ष मित्रवर
समय बने उज्जवल सुन्दरतम।

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