स्वर्णिम-स्वर्णिम, मधुरिम-मधुरिम,
स्वर्ण दिवस यह आया है।
पल-पल, क्षण-क्षण को जीने का
स्वर्णिम अवसर पाया है।
स्वर्ण दिवस यह........
इन्तजार जिस पल का हमको
वो पल सामने आया है,
याद रखें ताउम्र जिसे हम
ऐसा अवसर पाया है,
मधु भावों के नव किरणों को
पुलक-पुलक कर गाया है। स्वर्ण दिवस यह........
भाव उदित मन में नव होते
गीत मिलन के गाते हैं,
पुनः-पुनः इस स्वर्णिम क्षण में
इन्द्रधनुष छा जाते हैं,
ह्रदय-ह्रदय को छूकर हमने
झंकारों को लाया है। स्वर्ण दिवस यह........
अत्तदीपा विहरथ की यह
धारा बहती जायेगी,
नेतरहाट के कीर्तिवृक्ष को
विकसित करती जायेगी,
परम्परा और ज्ञान सुसज्जित
इसकी सुंदर काया है। स्वर्ण दिवस यह........
आओ मिलकर स्वर्णिम क्षण में
माता को हम नमन करें,
भावों के इस मधुर मिलन में
संकल्पों को ग्रहण करें ,
इस सृष्टि को नमन करें हम,
भाव मन में आया है। स्वर्ण दिवस यह........
(यह कविता मैंने और मणिशंकर शाही ने मिलकर नेतरहाट विद्यालय की स्वर्ण जयंती(१५ नवम्बर,२००४) के अवसर पर लिखी थी।)
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