अनगढ़...
Saturday, October 25, 2008
ओ किरण
ओ
किरण
!
मुझमें
समा
आलोकित
कर
मुझे
दूर
कर
अवसाद
मेरा
हँसने
दे
मुझे
फिर
से
खिलने
दे
मुझे
* * * * * *
ओ
पवन
!
मुझमें
समा
फैलाने
दे
पर
अपने
असीम
नभ
में
उड़ने
दे
मुझे
आज
खुलने
दे
मुझे
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