मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ
या सब कुछ जानता हूँ।
आँखें खोल कर देखूँ
तो सब कुछ ,
मूंद लूँ
तो कुछ भी नहीं।
बस मैं
बंद और खुली आंखें पहचानता हूँ।
किससे क्या दिखता है,
फर्क़ मैं यह जानता हूँ।
खुली आंखों से दर्द दिखता है
जीवन का छल
कटु नग्न सत्य
अपना लघुत्व
आत्मा हरण
चहुंओर पतन
और बहुत कुछ जिससे
भागता हूँ
इसलिये आँखें मूंदता हूँ।
या कहूँ, तो
मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ।
या सब कुछ जानता हूँ।
आँखें खोल कर देखूँ
तो सब कुछ ,
मूंद लूँ
तो कुछ भी नहीं।
बस मैं
बंद और खुली आंखें पहचानता हूँ।
किससे क्या दिखता है,
फर्क़ मैं यह जानता हूँ।
खुली आंखों से दर्द दिखता है
जीवन का छल
कटु नग्न सत्य
अपना लघुत्व
आत्मा हरण
चहुंओर पतन
और बहुत कुछ जिससे
भागता हूँ
इसलिये आँखें मूंदता हूँ।
या कहूँ, तो
मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ।
1 comment:
bahut achi kavita hai................
waise hamare vichar kaafi milte hain...............
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