दूर कहीं आते प्रकाश की
बनती, तुम परछाई हो,
नहीं छुऊँगा तुम्हें,
नहीं तो तुम्हारा अस्तित्व बदल जायेगा,
तुम बदल जाओगी।
विस्तृत नीलगगन की छवि लिए
झील की तुम शांत सतह हो,
स्पर्श नही करूँगा मैं,
नहीं तो लहर बनकर तुम
मुझसे दूर चली जाओगी,
तुम्हारा वह शांत पटल
फिर निर्द्वंद्व नहीं रह जायेगा।
तुम वंदना हो, कल्पना हो,
ऊँचे तल पर ही रहो,
पास नहीं आऊँगा मैं,
तुम्हें अपने लोक में नहीं खींचूँगा,
नहीं तो इस धरा पर आकर
मेरी तरह ही बन जाओगी तुम,
और यह भी बता दूँ कि
अपनी कल्पना को खुद की तरह
धूसर होते नहीं देख पाउँगा मैं,
जीवन का एक आधार
नहीं खोना चाहूँगा मैं।
बनती, तुम परछाई हो,
नहीं छुऊँगा तुम्हें,
नहीं तो तुम्हारा अस्तित्व बदल जायेगा,
तुम बदल जाओगी।
विस्तृत नीलगगन की छवि लिए
झील की तुम शांत सतह हो,
स्पर्श नही करूँगा मैं,
नहीं तो लहर बनकर तुम
मुझसे दूर चली जाओगी,
तुम्हारा वह शांत पटल
फिर निर्द्वंद्व नहीं रह जायेगा।
तुम वंदना हो, कल्पना हो,
ऊँचे तल पर ही रहो,
पास नहीं आऊँगा मैं,
तुम्हें अपने लोक में नहीं खींचूँगा,
नहीं तो इस धरा पर आकर
मेरी तरह ही बन जाओगी तुम,
और यह भी बता दूँ कि
अपनी कल्पना को खुद की तरह
धूसर होते नहीं देख पाउँगा मैं,
जीवन का एक आधार
नहीं खोना चाहूँगा मैं।
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