Sunday, March 23, 2008

नव प्रवाह

यह द्वेष क्यों
नव प्रेम है।
यह तिमिर क्यों
नव हेम है।

यह व्यथा क्यों
नव राह है।
यह क्लेश क्यों
नव चाह है।

यह दाह क्यों
नव सोम है।
यह क्षीण क्यों
नव व्योम है।

No comments: