मेरे सपनों में न आना,
यह मन विकल हो जाता है।
प्रातः की किरणों के संग तुम
उनकी लाली न बन आना,
यह मन उनसे रंग जाता है।
रंग-बिरंगे फूलों की हँसती
चितवन में तुम उतर न आना,
यह मन उनमें खिंच जाता है।
मद्धिम पवन के झोकों संग
मुझको छू तुम न बह जाना,
मन संग-संग बह जाता है।
प्यारी बदली की बूंदों का
कोमल वेश तुम न धर आना,
यह मन विकल तड़प जाता है।
ढलती सांझ के गहन पलों में
धुंध बन तुम उतर न आना,
यह मन उसमें खो जाता है।
मेरे एकांत पलों में तुम
मेरी यादों में न आना,
यह मन उनमें गुम जाता है।
मेरी पड़ती परछाई में तुम
अपना अक्स न दिखलाना,
यह मन उसमें खो जाता है।
चाँद की उजली किरणों में
शीतलता बन तुम न आना,
यह मन उसमें रम जाता है।
लय बनकर तुम चली न आना,
यह मन उसमें बंध जाता है।
1 comment:
bahut gaharayi hai is kavita me...thodi language ki dikkat hoti hai mujhe kyuki meri hindi itni pavitra nahi hai...but feeling pure ubhar k aa rhe aur jiske liye bhi likhe hai, bahut khushnaseeb hai wo :)
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