Monday, June 25, 2012

तुम क्या थी


तुम क्या थी
बस
एक स्वप्न मधुर सा,
बस मेरी एक तृष्णा थी,
फिर भी मैं कुछ सोच चला था
भावों को मन में रोप चला था,
समय चला
अहसास बढ़े
कुछ दबे रहे
कुछ फूट चले,
तब उनमें से मैंने
थोड़े तुमसे भी कहे थे,
कुछ हाव-भाव में,
कुछ मन-ही-मन में,
कुछ होठों से भी निकले थे,
कुछ कविता के शब्दों में थे,
कुछ छिपे हुए उद्गारों में थे,
पर अच्छा है, कि
यह भी सोचूँ
कुछ बिना कहे ही रह गए
कुछ बिना सुने ही रह गए
जो कुछ तुम तक पहुँचे भी तो
उत्तर बिना ही रह गए,
वो भाव अधूरे रह गए,
कुछ स्वप्न अधूरे रह गए,
वह गीत अधूरा रह गया,
वह पूजा अधूरी रह गयी,
तुम जो मुझसे दूर हुए तो
वह कहानी,
कहानी ही रह गयी।

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