Saturday, August 9, 2008

मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ ।

मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ
इस जीवन के प्रेमिल छन्दों को
तुम्हें सुनाता चलता हूँ

नदी को सबने देखा है,
उसकी मस्ती भी देखी है,
उसकी मस्ती का अंश लिए
मैं जमीं नापता चलता हूँ
मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ

फूलों में मुस्कान भरी है,
गन्ध, रस, माधुर्य भरा,
उस चितवन का सत्त्व लिए
मैं हँसी बाँटता चलता हूँ
मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ

हवा यह ख़ुद में जीवन का
संगीत समाए चलती है,
उस सरगम को साथ लिए
मैं तुम्हें सुनाता चलता हूँ
मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ

लयबद्ध गति ही जीवन है,
रुक जाने में वह आन कहाँ,
प्रकृति की अस्फुट लय-लहरी
मैं तुम्हें बताता चलता हूँ
मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ

मैं थोड़ा हूँ, मुझे ज्ञात है,
जीवन का यह लघु साथ है,
काम सकूँ औरों के, सो
मैं हाथ बढाता चलता हूँ
मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ

जीवन के रंग बहुत देखे हैं,
खुशी और गम भी देखे हैं,
दुःख सहेजकर निज अन्तर में
मैं हर्ष बाँटता चलता हूँ
मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ

पीछे कितने दुःख-दर्द भरे,
कितने कंटक हैं आन पड़े,
उनको पीछे छोड़ सरल पथ
मैं तुम्हें दिखाता चलता हूँ
मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ

विरह-मिलन आते-जाते है,
मधुर स्मृतियाँ ही साथी हैं,
उन पल को जी लेने को मैं
संग तुम्हारे हो चलता हूँ

मैं यूँ ही बढ़ता चलता हूँ
इस जीवन के प्रेमिल छन्दों को
तुम्हें सुनाता चलता हूँ



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