Sunday, August 24, 2008

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प्रेम मधुर स्पर्श प्रिय का है,
गहन उल्लास निज अन्तर का
अधमुंदे नयनों में स्वप्निल
मुदित हास प्रस्तुत जीवन का

प्रिय होठों से उत्सृत शब्दों
में, खोजता सत्त्व जीवन का
शब्दों के बिना अधरों में
परम सुख पाता जीवन का

नयनों की चितवन में पाता
आनंद धरा पर अम्बर का
अनदेखे, अनकहे शब्दों में,
चिर गान मृण्मय जीवन का

सर्वस्व समर्पण की इच्छा
है ध्येय यह निज अन्तस् का
शब्द कम हैं मेरी झोली में,
सार गहो सकल भावों का

कुछ बातें कहनीं बाकी हैं,
है इंतजार उन प्रहरों का
पाता संबल तन्हाई में मैं
मुस्कान मदिर उन अधरों का

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