Sunday, August 24, 2008

गीत मेरे प्राण गाओ

गीत मेरे प्राण गाओ
व्यथित मन की इस व्यथा को
मुदित होकर तुम सुनाओ.
गीत मेरे प्राण गाओ

तिमिर छाया है गहन यह,
भूला मैं निज राह को हूँ,
संगी खोजता भ्रमित मैं
राह में एकाकी खडा हूँ।
भ्रमित मन की इस तृषा को
मुदित होकर तुम सुनाओ।
गीत मेरे प्राण गाओ।

ना शिखर पर, ना ही
तल पर,
मैं खड़ा मँझधार में हूँ,
प्राण मेरे पथ सुझाओ,
मैं अगम संसार में हूँ।
अवनत मन की इस दशा को
सहज होकर तुम सुनाओ।
गीत मेरे प्राण गाओ।

प्रश्न अंकित हैं अन्तर में,
अन्जान उसके हल से मैं हूँ,
भाव मेरे तुम ही सकल हो,
बिन तुम्हारे शून्य मैं हूँ।
अनाथ मन की उलझन को
नाथ बनकर तुम हटाओ।
गीत मेरे प्राण गाओ।

अन्जान अब तक ख़ुद से मैं,
राहें कँटीली ही मिली हैं।
वन-विजन, सकल शून्य भुवन में,
कली कंटक से छिदीं हैं।
पीडित मन की वेदना को
हसित मन से तुम सुनाओ।
गीत मेरे प्राण गाओ।

हूँ व्यथित मैं निज हृदय में,
क्या लेना इस से जग को है।
गरल पान करता चला हूँ,
भावामृत देना जग को है।
विकल मन की भावना को
सरल होकर तुम सुनाओ।
गीत मेरे प्राण गाओ।

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